९६६ |
ताजमहल बांधायला कारागीर होते कुशल |
-------- चे नाव घेतो तुमच्यासाठी स्पेशल |
९६७ |
आपल्या देशात करावा हिंदी भाषेचा मान |
-------- चे नाव घेतो ऐका सर्व देऊन कान |
९६८ |
देवळाला खरी शोभा कळसाने येते |
-------- मूळे माझे ग्रुहसौख्य दुणावते |
९६९ |
अभिमान नाही संपत्तीचा गर्व नाही रुपाचा |
-------- ला घास घालतो वरण-भात तुपाचा |
९७० |
देशभक्तांच्या त्यागामुळे स्वराज्य हाती
आले |
-------- शी लग्न करुन मनोरथ पुर्ण झाले |
९७१ |
श्रावण महिन्यात प्रत्येक वारी सण |
-------- ला सुखात ठेवीन हा माझा पण |
९७२ |
टाळ चिपळयांचा गजर त्यामध्ये वाजे वीणा |
-------- चे नाव घेतो सर्व जयहिंद म्हणा |
९७३ |
नीलवर्ण आकाशातुन पडती
पावसाच्या सरी |
-------- चे नाव घेतो
-------- च्या घरी |
९७४ |
पर्जन्याच्या
व्रुष्टीने स्रुष्टी होते हिरवी गार |
-------- च्या गळयात
घालतो मंगळ सुत्राचा हार |
९७५ |
चंद्राचा होता उदय
समुद्राला येते भरती |
-------- दर्शनाने सारे
श्रम हरती |
९७६ |
निळे पाणी, निळे डोंगर,
हिरवे हिरवे रान |
--------चे नाव घेऊन
राखतो सर्वांचा मान |
९७७ |
चंद्राला पाहुन भरती
येते सागराला |
-------- ची जोड मिळाली
माझ्या जीवनाला |
९७८ |
हिमालय पर्वतावर शंकर
- पार्वतीची जोडी |
-------- च्या जीवनात
मला आहे गोडी |
९७९ |
जीवनात लाभला मनासारखा
साथी |
माझ्या संसार रथावर
-------- सारथी |
९८० |
जगाला सुवास देत उमलली
कळी |
भाग्याने लाभली मला
-------- प्रेमपुतळी |
९८१ |
रुक्मीणीने पण केला
क्रुष्णालाचं वरीन |
---------- च्या
साथीनं आदर्श संसार करीन |
९८२ |
जिजाऊ सारखी माता
शिवाजी सारखा पुत्र |
---------- च्या
गळयात बांधतो मंगळसुत्र |
९८३ |
राधिकेला क्रुष्ण म्हणे
हास राधे हास |
मी देतो -------- ला
लाडवाचा घास |
९८४ |
मायामय नगरी, प्रेममय
संसार |
---------- च्या
जीवावर माझ्या जीवनाचा भार |
९८५ |
सायंकाळच्या आकाशाचा
पिवळसर रंग |
---------- माझी
नेहमी घरकामात दंग |